उसी ने हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया। (कुलुस्सियों 1:13)

मसीह में हमें प्रभु के राज्य के जीवन में बुलाया गया है, एक ऐसा जीवन जहाँ हर दिन चमत्कार और अलौकिकता का अंतहीन प्रवाह होता है। जब यीशु पृथ्वी पर था, तो उसने राज्य का जीवन जिया। उसका जीवन और सेवकाई चमत्कारी और अलौकिक थी। उसने एक छोटे लड़के के भोजन से पांच हजार लोगों को भोजन कराया (महिलाओं और बच्चों को इसमें गिना नहीं गया)। उसने बीमारों को चंगा किया, पानी पर चला, मृतकों को जीवित किया। उसने और भी बहुत से अलौकिक काम किये, जो हमारे लिए बाइबल में दर्ज़ हैं। हालाँकि, जब यीशु ने ये चमत्कार किए, तो उसके लिए यह कुछ ऐसा नहीं था जिसे अंदर से निकालने के लिए उसे स्वयं से संघर्ष करना पड़ा, यह तो उसके भीतर राज्य के जीवन का एक कार्य था।

यीशु ने जो कार्य किये, और जिस प्रकार उसने जीवन जिया, उससे पता चलता है कि आज हमें किस प्रकार जीवन जीना और कार्य करना चाहिए, क्योंकि हम इसी राज्य जीवन के सहभागी हैं। बाइबल कहती है: “…जैसा वह है वैसे ही संसार में हम भी हैं” (1 यूहन्ना 4:17)। जो जीवन उसमें था, वही जीवन आज आप में भी है। आप अपने आप को वचन के ज्ञान से जितना अधिक भरेंगे, उतना ही अधिक आप राज्य का जीवन जीने में सक्षम होंगे।

बहुत से लोग वचन के प्रति अज्ञानता के कारण साधारण मनुष्य की तरह जीवन जीते हैं (भजन संहिता 82:5)। साधारण जीवन जीने से इंकार करें। परमेश्वर के वचन पर मनन करने के द्वारा राज्य जीवन की वास्तविकता के प्रति जागृत हो जाइए। परमेश्वर के वचन के अनुसार जीवन जीने के द्वारा राज्य जीवन का सचेतन रूप से अभ्यास करें।

प्रार्थना:
प्रिय पिता, मुझे प्रभु के राज्य का जीवन देने के लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूँ। मैं हर दिन चमत्कारी जीवन जीता हूँ। जैसे मैं वचन का अध्ययन करता हूँ, और इस जीवन के ज्ञान में वृद्धि करता हूँ, मैं सचेत रूप से इसका अभ्यास करता हूँ और राज्य को महिमा देता हूँ, यीशु के नाम में। आमीन

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