और हम भी वही विश्वास की आत्मा रखते हैं, जैसा लिखा है, कि मैं ने विश्वास किया, इसलिये बोला; सो हम भी विश्वास करते हैं, इसलिये बोलते हैं। (2 कुरिन्थियों 4:13)

कई मसीहों को डर के बारे में बात करने की आदत होती है। कुछ लोगों को विश्वास और डर दोनों की बात एक साथ करने की आदत होती है। यही कारण है कि वे अपने जीवन में फलदायक और उत्पादक नहीं हैं। उनके डर से भरे कथनों के कारण उनका विश्वास व्यर्थ हो जाता है। विश्वास कभी भी डर की बातें नहीं बोलता।

आपको परमेश्वर की संतान के रूप में यह निर्णय लेना होगा, कि आप कभी भी डर से भरी बातें नहीं करेंगे, चाहे आपके सामने कोई भी स्थिति क्यों न हो। आपको इसके विषय में परमेश्वर के वचन से सत्य की खोज करनी चाहिए, और विश्वास के शब्द बोलने चाहिए। दाऊद से सीखें; जब दाऊद ने गोलियत का सामना किया तो उसने यह नहीं कहा कि वह विशालकाय कितना खतरनाक था, बल्कि उसने कहा कि परमेश्वर कितना महान है। उसने डर की नहीं, विश्वास की बात की। दाऊद ने उस विशालकाय के आकार पर विचार नहीं किया, बल्कि उसे परमेश्वर के आकार पर पूरा भरोसा था। दाऊद को गोलियत की ताकत जानने की ज़रूरत नहीं थी क्योंकि वह पहले से ही परमेश्वर की ताकत जानता था। यह उसका विश्वास ही था जिसने उसे उस विशालकाय पर विजय दिलाई, जिसका सामना करने से इस्राएल की पूरी सेना ने डर के कारण इनकार कर दिया था (संदर्भ1 शमूएल 17)।

आज, आप जहां हैं, और जीवन में जो कुछ भी हैं, वह आपके बीते कल में बोले गए शब्दों का परिणाम है। यीशु ने कहा, जो तुम कहोगे, वही तुम्हें मिलेगा (मरकुस 11:23)। इसलिए, अपने विश्वास से भरे शब्दों से अपने जीवन को सुन्दर बनाइये। अपनी जीभ का उपयोग करिए मुसीबत, डिप्रेशन, गरीबी और निराशाओं से बाहर आने के लिए। अपने आप को परमेश्वर के वचन से भरकर और परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम को बढ़ाकर अपने जीवन से डर को समाप्त करें, क्योंकि सिद्ध प्रेम सारे डर को दूर कर देता है (संदर्भ 1 यूहन्ना 4:18)।

घोषणा:
मैं विश्वास की बात करता हूँ, डर की नहीं। मुझे डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि दुश्मन पराजित हो चुका है। मैं घोषणा करता हूँ कि मेरा विश्वास काम कर रहा है और मैं मसीह में पूर्ण आनंद और भरपूरी का जीवन जी रहा हूँ। मैं मसीह यीशु में अपनी विजय और महिमा की घोषणा करता हूँ। हल्लेलुयाह!

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