अंतिम वचन: प्रभु में और उस की सामर्थ के प्रभाव में बलवन्त बनो। (इफिसियों 6:10)
परमेश्वर की संतान होने के नाते, हममें भी वही जीवन है जो यीशु में था। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर का वचन स्पष्ट है: “…जैसा वह (यीशु) है, वैसे ही हम भी इस संसार में हैं” (1 यूहन्ना 4:17)। इसलिए, हर कदम जो आप उठाते हैं, हर शब्द जो आप बोलते हैं, आपके अन्दर उसकी सामर्थ का प्रवाह होना चाहिए।
उसकी सामर्थ आप में है, क्योंकि वह आप में रहता है। लेकिन आपको यह सीखना होगा कि इसे अपनी दुनिया में कैसे प्रवाहित होने देना है । रोमियों 8:19 कहता है: “क्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की बाट जोह रही है”; ये “परमेश्वर के पुत्र” कौन हैं? आप और मैं। हम अपने अंदर परमेश्वर की सामर्थ के साथ चुप नहीं रह सकते, हमें इसे अपने अंदर से प्रवाहित होने देना है।
सुसमाचार का प्रचार करें, उसके वचन को फैलाएं, उसके प्रेम को प्रदर्शित करें, बीमारों को चंगा करें, अपने संसार को आशीषित करें; आपको उसकी सामर्थ को प्रदर्शित करने के लिए बुलाया गया है, इसे अपने माध्यम से प्रवाहित होने दें। अपने दिमाग को परमेश्वर के वचन और परमेश्वर की आत्मा के विचारों से भर लें! परमेश्वर के वचन के अनुसार जीवन जीकर सचेत रूप से परमेश्वर के जीवन का अभ्यास करें। उसकी सामर्थ को अपने माध्यम से प्रवाहित होने दें!
घोषणा:
मुझे अलौकिकता के लिए बुलाया गया है। मैं मसीह यीशु में अपनी वास्तविकता के प्रति सचेत हूँ और पवित्र आत्मा के द्वारा मुझमें परमेश्वर की सामर्थ से अपने संसार को आशीषित करता हूँ। मेरे अस्तित्व का हर फाइबर ऊर्जावान है और चमत्कार करने की क्षमता से भरा हुआ है। मैं इस संसार में परमेश्वर का एक हाथ हूँ। हल्लेलुजाह!