मसीह ने हमें स्वतंत्रता के लिये स्वतंत्र किया है; इसलिये दृढ़ रहो, और दासत्व के जूए में फिर से न जुतो। (गलातियों 5:1)
मसीह यीशु में हमें; व्यवस्था के, शैतान के, और संसार के,सारे बंधनों से बाहर लाया गया है। उसने हमें ख़ुद में सम्पूर्ण स्वतंत्रता दी है। हालाँकि, कई लोग अभी भी खुद को दुनिया और उसके तत्वों से संघर्ष करते हुए पाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के वचन के माध्यम से सही मानसिकता, विकसित करना नहीं सीखा है।
मानसिकता सोचने की प्रक्रिया नहीं है। मानसिकता वास्तव में संदर्भित करती है; एक आदतन या विशिष्ट मानसिक रवैया जो यह निर्धारित करता है कि आप स्थितियों की व्याख्या कैसे करते हैं और उन पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की एक मानसिकता होती है, जिसे उसने समय के साथ विकसित किया है, हालांकि महत्वपूर्ण बात यह है कि उस मानसिकता की उत्पत्ति कहां से हुई है।
केवल परमेश्वर का वचन ही जीवन के प्रति आपके मानसिक रवैये और स्वभाव को आकार प्रदान करता है। एक बार जब आप मसीह को स्वीकार कर लेते हैं, तो आपको मसीह के सत्यनिष्ठा में अपनी मानसिकता को विकसित करना चाहिए; परमेश्वर के वचन का अध्ययन और उस पर मनन करना चाहिए।
सही मानसिकता रखना कोई उपहार नहीं है, ना ही आप इसे केवल प्रार्थना करने से प्राप्त कर सकते हैं। समय के साथ मानसिकता को विकसित करने की आवश्यकता होती है। आपको प्रतिदिन वचन का अध्ययन और मनन करते हुए, अपने आप को वचन से तृप्त और परिपूर्ण करना हैं। तब, आप पाएंगे कि आपकी सोचने का ढंग बदल गया है; आपका मानसिक रवैया और चीजों के प्रति मानसिक समझ बेहतर हो गई है। मसीह की मानसिकता आपको विजय, पर्याप्तता, दिव्य स्वास्थ्य और आनंद के बारे में सोचने के लिए प्रेरित कर देगी। आप चिंता करना या हार या खतरे के बारे में सोचना बंद कर देंगे। आज ही निर्णय लें, कि आप सही मानसिकता विकसित करेंगे और आप परमेश्वर की महिमा में आनंदित होंगे।
प्रार्थना:
अनमोल स्वर्गीय पिता, मैं आपका धन्यवाद करता हूं आपके वचन के उपहार के लिए। मैं परमेश्वर के वचन के निरंतर अध्ययन और मनन के माध्यम से मसीह की मानसिकता विकसित करता हूँ। मैं परिस्थितियों की व्याख्या केवल आपके वचन के दृष्टिकोण से करता हूँ, यीशु के शक्तिशाली नाम में। आमीन!