दशमांश कि शिक्षा का यह उद्देश्य है कि तुम यह सीख पाओ कि सदैव परमेश्वर को अपने जीवन में प्रथम स्थान में रखो। (व्यवस्थाविवरण 14:23b TLB)
परमेश्वर को जीवन में पहले रखना कोई दबाव नहीं वरण सौभाग्य और सम्मान कि बात है। मसीह में होना कोई और धर्म में होने जैसा नहीं है। मसीहत कोई धर्म ही नहीं है, परन्तु यह दिव्यता के साथ एक चमत्कारी रिश्ता है। यह परमेश्वर का मानव के भीतर वास करते हुए मानव के साथ एक रिश्ता और संगती है। हर एक रिश्ते को मज़बूत बनाने के लिए दोनो सदस्य के ओर से प्रेम, भरोसा और परवाह दिखाना ज़रूरी होता है। जैसे परमेश्वर आपसे प्रेम करते हुए आपका ध्यान रखता है, यह ज़रूरी है आप भी उसकी इज्ज़त करे और उसके वचन को पालन करते हुए उसे निरंतर उत्साहित करे। परमेश्वर के पुत्र होते हुए यह ज़रूरी है कि आप इस बात का ध्यान रखे कि परमेश्वर आपके प्रति क्या भावना रखता है। वह आपसे प्रेम करता है और आपके प्रेम कि उम्मीद रखता है।
जब परमेश्वर ने आदम को भलाई और बुराई के ज्ञान के पेड़ से खाने के लिए मना किया था, उसकी वजह यह थी कि वह आदम के प्रेम को आज्ञाकारिता के रूप में पाना चाहता था। आपकी आज्ञाकारिता आपके प्रेम को दिखाती है (ref. युहन्ना 14:15)। परमेश्वर एक दिव्य व्यक्तित्व है, वह पवित्र आत्मा के द्वारा आपके भीतर रहते हुए, आपके दिनचर्या में आपके साथ भी रहता है। परमेश्वर ने आपसे इतना प्रेम रखा कि उसने अपने पुत्र को कुर्बान किया ताकि वह आपको न खोये वरन आपको वह अपना पुत्र बना पाए। परमेश्वर के पुत्र होते हुए यह आपके लिए ज़रूरी है कि आप परमेश्वर को अपने जीवन में प्रथम स्थान दें। दशमांश का सिद्धांत परमेश्वर ने अपने पुत्रो के साथ व्यापार करने के जैसा नहीं बनाया है। हर एक चीज़ तो उसकी ही है, उसे किसी से भी किसी भी वस्तु कि ज़रुरत नहीं है। परमेश्वर ने दशमांश के सिद्धांत को अपने बच्चों को सिखाया है ताकि उन सबको एक तरीका मिले जिससे वें सब अपने आर्थिक जीवन में परमेश्वर को पहला स्थान दे पाए। एक व्यक्ति अपना धन एकमात्र वहाँ डालता है जहा उसके ह्रदय का प्रेम है (ref. मत्ति 6:21)।
जब परमेश्वर आपको आर्थिक रीती से आगे लेकर चलते हुए आपका आर्थिक ख्याल रखता है और आपके जीवन में समृद्धि लाता है, तब वह आपके जीवन में हर एक स्रोत के आय के दसवे हिस्से पर स्वयं का दावा करता है। मलाकी 3:9-10, हमें अच्छे तरीके से दिखाता है कि परमेश्वर दशमांश को कितने ज़यादा गंभीरता के साथ देखता है। परमेश्वर चुनौती के साथ यह भी घोषणा करता है कि वह किस प्रकार से हर एक हानी को उनके जीवन से दूर धकेलेगा जो अपना दशमांश लौटाते है। जब आप अपने संपत्ति का दसवाँ हिस्सा परमेश्वर को लौटाने के लिए परमेश्वर के भवन में लाते है, आपका स्वर्गीय पिता उसे आपके विश्वसनीयता और उसके प्रति भरोसे के रूप में स्वीकारता है। याद रखिये, ये एक रिश्ता है और परमेश्वर को अपने जीवन में प्रथम स्थान देकर उसको उत्साहित रखना बहुत अनिवार्य है।
प्रार्थना:
प्रिय पिता, धन्यवाद कि आप ने मुझे इस सिद्धांत को सिखाया कि मैं किस प्रकार से आपको अपने जीवन में प्रथम स्थान दे पाऊं। जैसे मै अपने जीवन में आपको प्रथम स्थान देता हूँ, मैं आपके हर एक सपने को जो आपने मेरे लिए रखे है अपने जीवन में वास्तव बनाता हूँ। मुझे यह भरोसा है कि आप मुझे हर एक चीज़ में समृद्धी देते है, इस भरोसे को मैं अपने दशमांश को लौटाकर प्रकट करता हूँ। येशु के नाम में। आमीन!