क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरुत्थान भी आया और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे (1 कुरिन्थियों 15: 21-22) ।
जब यीशु क्रूस पर मरा, तो उसने पापियों का स्थान ले लिया। वह मनुष्य के स्थान के रूप में आया था। पूरी दुनिया को पाप की सजा से बचाया गया है, लेकिन परमेश्वर की रुचि सिर्फ़ मनुष्य को पाप की सजा से बचाने में नहीं थी, बल्कि मनुष्य को पाप के जीवन और स्वभाव से बचाने में थी।
यीशु मसीह की मृत्यु ने हमारे ख़िलाफ़ आरोपों का निपटारा कर दिया था, लेकिन इसने हमें परमेश्वर के साथ एक नहीं बनाया या परमेश्वर के साथ हमारा मेल-मिलाप नहीं कराया ! यह हमें परमेश्वर के साथ दोस्ती या रिश्ते में नहीं लाया। इसने हमें अनन्त जीवन नहीं दिया। केवल जब हम अपने जीवन के ऊपर यीशु के प्रभुता को स्वीकार करते है अपने हृदय में विश्वास करते हुए कि वह मृतकों में से जी उठा है, तब हम परमेश्वर के साथ एक रिश्ते में प्रवेश करते है। रोमियों 10: 9-10 में बाइबल कहती है; जो कोई भी यीशु के प्रभुता को स्वीकार करता है और विश्वास करता है कि परमेश्वर ने उसे मृतकों में से उठाया है, उसे बचाया जाएगा। उसके प्रभुता की हमारी व्यक्तिगत घोषणा और उसके पुनरुत्थान में विश्वास ने, हमारे उद्धार को “सक्रिय” किया; इस के द्वारा हमें अनन्त जीवन मिला है और हमें परमेश्वर के साथ एकता में लाया गया है। हम परमेश्वर के पितृत्व के प्रति जगे हुए है; हमारी आत्मा के पुनः निर्माण के लिए; पवित्र आत्मा की संगति और परमेश्वर के वचन की प्रभावकारिता के लिए।
मसीहत यीशु के चरनी में जन्म या क्रूस पर उसकी मृत्यु से शुरू नहीं होती है; परन्तु उसके मृतकों में से पुनरुत्थान पर शुरू होती है। क्योंकि वह जीवित है, हम आज उसके नाम पर जीते हैं और हम परमेश्वर के पुत्र हैं। 1 यूहन्ना 3:1 कहता है; “देखो पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाएँ और हम हैं भी: इस कारण संसार हमें नहीं जानता, क्योंकि उस ने उसे भी नहीं जाना।”
घोषणा:
मैं परमेश्वर से जन्मा हूँ। मैं परमप्रधान के साथ एकता में आ गया हूँ क्योंकि यीशु मसीह ही मेरा एकमात्र प्रभु है। अनन्त जीवन का उपहार मेरा है। मैं पृथ्वी पर रहते हुए, परमेश्वर की सामर्थ और महिमा का प्रदर्शन करता हूँ, बहुतों को उसके महिमामय सुसमाचार के प्रकाश में लाता हूँ, यीशु के नाम में। आमीन