उसने हर चीज़ को अपने-अपने समय पर सुंदर बनाया है। उसने मनुष्य के मन में अनादि-अनन्त काल का ज्ञान भी रखा है; फिर भी कोई भी समझ नहीं सकता कि परमेश्वर ने आरम्भ से अन्त तक क्या किया है। (सभोपदेशक 3:11)

परमेश्वर ने हमारे हृदय में अनन्ता का ज्ञान डाला है। हर वस्तु जिसकी हम कल्पना करते हैं, हमें एक दृष्टिकोण प्रदान करती है और वह दृष्टिकोण ही आत्मा की सामर्थ के माध्यम से सृजन की शुरुआत करता है। यह कोई मैकेनिकल प्रक्रिया नहीं है, जैसा कि कई लोग सोचते हैं, यह किसी प्रकार का अभिनय भी नहीं है, बल्कि यह हमारे हृदय में परमेश्वर के वचन का कार्य है।

जब हम परमेश्वर और उसके वचन पर ध्यान देते हैं, तो वह हमें दिशा देता है और वह दिशा हमारे जीवन में सही दृष्टिकोण लाती है। यदि कोई व्यक्ति सही मन और स्पष्ट हृदय के साथ परमेश्वर के साथ संगति करता है, तो उस व्यक्ति के लिए एक ही दशा में बने रहना असंभव है। ऐसा व्यक्ति सुसमाचार के लिए उत्साहित रहेगा तथा उसके हृदय में स्थापित अनन्ता से वो प्रभावी होगा।

समस्या तब होती है जब लोग अपना दृष्टिकोण नहीं बदलते और अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को अपने हृदय के केंद्र में रखकर घंटों प्रार्थना में बिताते हैं, वे बिना किसी बदलाव के प्रार्थना करते रहते हैं। याकूब 4:3 कहता है: “तुम मांगते हो और पाते नहीं; इसलिये कि बुरी इच्छा से मांगते हो, ताकि अपनी अभिलाषाओं में उसे उड़ा दो।” आपको परमेश्वर और उसके वचन को अपने हृदय के केन्द्र में रखना चाहिए और जो कुछ भी आप श्रृष्टि करना चाहते हैं, वह घटित होगा, क्योंकि आपके हृदय में अनन्ता स्थापित हो चुकी है।

परमेश्वर ने आपको जो सामर्थ दी है उसे समझें और उस पर मनन करें। जीवन में अपना दृष्टिकोण उसके साथ एक कर लें। यदि आप इस सत्य को समझ लें तो यह कल्पना से पड़े है, कि आप और आपका दुनिया पर प्रभाव कितना महान होगा।

प्रार्थना:
अनमोल पिता, मेरे हृदय में अनन्ता डालने के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। मैं इस सत्य पर मनन करता हूँ और अपना दृष्टिकोण आपके साथ एक करता हूँ प्रभु। मैं परमेश्वर की महिमा के लिए जीता हूँ, तथा बहुतों को उसकी अद्भुत ज्योति में लाता हूँ। यीशु के नाम में। आमीन!

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