और इस्राएल अपने सब पुत्रों से बढ़के यूसुफ से प्रीति रखता था, क्योंकि वह उसके बुढ़ापे का पुत्र था: और उसने उसके लिये रंग बिरंगा अंगरखा बनवाया। (उत्पत्ति 37:3)

यूसुफ, याकूब (इज़राइल) के बारह पुत्रों में से एक था और उसकी पसंदीदा पत्नी से पैदा हुआ पहला पुत्र था। यूसुफ, याकूब का पसंदीदा पुत्र था और इस बात से बाकी भाई खफा रहते थे। यूसुफ परमेश्वर की बुद्धिमत्ता सेअभिषिक्त था और वह परमेश्वर के स्वप्न देखता था, जिसके माध्यम से परमेश्वर ने उससे उसके भविष्य के बारे में बात की जहाँ वह अपने भाइयों पर शासन करेगा।

उसके भाई उसे पसंद नहीं करते थे और उससे छुटकारा पाना चाहते थे और एक अवसर पर, उन्हें वही करने का मौका मिला जो वे चाहते थे। जिस दिन यूसुफ खेती के लिए उनके साथ जुड़ गया, उन्होंने उसे गुलामी के लिए बेच दिया और वह गुलाम बनकर मिस्र चला गया। फिर भी, बाइबल कहती है कि उसे अपने स्वामी पोतीपर से अनुग्रह प्राप्त हुआ और उसने उसकी सेवा की: ” फिर उसने उसको अपने घर का अधिकारी बना के अपना सब कुछ उसके हाथ में सौप दिया” (उत्पत्ति 39:4)।

कुछ समय के बाद, यूसुफ को कैद कर लिया गया क्योंकि उसके स्वामी की पत्नी ने उस पर झूठा आरोप लगाया था। परमेश्वर की बुद्धिमत्ता ने यूसुफ को बढ़ाया और उसे लाभ दिया, जेल में रहते हुए भी वह कैदियों का मुखिया बन गया। बाद में, परमेश्वर की योजना के अनुसार उसने फिरौन को उसके सपने को समझने में मदद की और उसने परमेश्वर की बुद्धिमत्ता के माध्यम से मिस्र को अकाल से बचाया।

फिरौन की अपने सेवकों से की गई शक्तिशाली टिप्पणियाँ उस बुद्धिमत्ता के परिणामस्वरूप थीं जो उसने देखी थी और यूसुफ से सुनी थी: ” क्या हम को ऐसा पुरूष जैसा यह है, जिस में परमेश्वर की आत्मा रहती है, मिल सकता है? फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, परमेश्वर ने जो तुझे इतनी बुद्धिमत्ता दि है कि तेरे तुल्य कोई समझदार और बुद्धिमान् नहीं; इस कारण तू मेरे घर का अधिकारी होगा और तेरी आज्ञा के अनुसार मेरी सारी प्रजा चलेगी, केवल राजगद्दी के विषय मैं तुझ से बड़ा ठहरूंगा। फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, सुन, मैं तुझ को मिस्र के सारे देश के ऊपर अधिकारी ठहरा देता हूं” (उत्पत्ति 41: 38-41) । यूसुफ मिस्र का प्रधान मंत्री बन गया। और, आख़िरकार वह दिन आया जब उसके सभी भाई उसके सामने झुक गए, जो सपना परमेश्वर ने उसे दिखाया था वह पूरा हो गया।

यूसुफ के पसंदीदा बेटे से गुलाम बनने तक, जेल से महल तक की यात्रा के सभी वर्षों में, उसने कभी भी परमेश्वर की योजना पर संदेह नहीं किया। अपनी यात्रा के दौरान उसने परमेश्वर पर भरोसा किया। एक मसीह के रूप में, हमें मसीह यीशु में अपने जीवन यात्रा और मिनिस्ट्री में हमेशा परमेश्वर पर भरोसा रखना चाहिए। परमेश्वर की बुद्धिमत्ता को अपने मार्ग को चलाने दें और आप को कभी भी हानि नहीं होगी।

प्रार्थना:
अनमोल स्वर्गीय पिता, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ मेरे जीवन में आपकी अद्भुत योजनाओं के लिए। मैं पूरी तरह से आप पर निर्भर हूँ और मेरा एक भी कदम नहीं डगमगाता। मेरा जन्म जीतने के लिए हुआ है, यीशु के नाम में। आमीन!

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