इसके अलावा [यीशु ने] उन्हें एक दृष्टान्त भी सुनाया कि उन्हें हमेशा प्रार्थना करना चाहिए और कायर नहीं बनना चाहिए (बेहोश नहीं होना, हिम्मत नहीं हारना और हार नहीं मानना )। (लूका 18:1 एएमपी)
यीशु ने अपने शिष्यों को जज और विधवा के दृष्टांत (लूका 18:2-9), के माध्यम से समझाया कि प्रार्थना में हार न मानना कितना महत्वपूर्ण है।
बहुत से लोग जब अपनी प्रार्थनाओं का परिणाम नहीं देखते तो बहुत जल्द ही हिम्मत हार जाते हैं। वे शुरू करने के तुरंत बाद ही हार मान लेते हैं, वे तुरंत परिणाम चाहते हैं। हालाँकि, कुछ ऐसे मामले हैं जिनमें बदलाव लाने के लिए आपको लगातार प्रार्थना करने की ज़रूरत है। आप कुछ प्रार्थना सेशन के बाद ही कायर नहीं बन सकते और ऐसे नहीं कह सकते हैं कि ; “ओह, यह काम नहीं कर रहा है, मैं हार मान रहा हूँ!” नहीं, यह प्रार्थना का सही तरीका नहीं है। आप प्रार्थना करते समय विश्वास के साथ अपने स्थान पर अडिग रहते हैं, और तब तक आगे नहीं बढ़ते जब तक आप इच्छित परिवर्तन नहीं देख लेते, भले ही इसमें कितना भी समय लगे।
उदाहरण के लिए, यदि आप अपने राष्ट्र के लिए, अपने राष्ट्र की शांति के लिए, अपने राष्ट्र में सुसमाचार के बेरोक फैलाव के लिए प्रार्थना कर रहे हैं; तो एक दिन की प्रार्थना के बाद रुकें नहीं, आपको इसके लिए लगातार प्रार्थना करते रहना होगा। आप थक नहीं सकते। परमेश्वर ने आपके राष्ट्र को आपके भरोसे पर सौंप दिया है, और आप ही हैं जो अपनी प्रार्थना के माध्यम से अपने राष्ट्र पर परमेश्वर की इच्छा को स्थापित कर सकते हैं।
हमारे मुख्य वर्स को अपने लिए मास्टर की ओर से एक प्रत्यक्ष आदेश के रूप में लें और प्रार्थना में हताश होने से इंकार करें।
प्रार्थना:
आशीषित स्वर्गीय पिता, धन्यवाद अपने वचन के द्वारा मुझे राज्य के सिद्ध मार्गों में बढ़ाने के लिए। मैं प्रार्थना की शक्ति के माध्यम से परिवर्तन लाने के लिए तैयार हूँ, और मैं कभी हार नहीं मानता। आमीन