सत्य की सामर्थ: प्रभु यीशु मसीह
यीशु ने उससे कहा, मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता। (यूहन्ना 14:6) हमारा मुख्य वर्स स्वयं प्रभु यीशु मसीह की घोषणा है। उसने कहा कि वह “सत्य”, “मार्ग” और “जीवन” हैं। उसी में सारा समाधान और जवाब छिपा है। उसके बाहर कोई सत्य […]
सत्य की सामर्थ: परमेश्वर का वचन हमेशा कार्य करता है
वैसे ही मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सफल करेगा। (यशायाह 55:11) परमेश्वर का वचन सृष्टि के लिए बुनियादी सामग्री है। आरंभ से […]
सत्य की सामर्थ: परमेश्वर का वचन
क्योंकि जिसके पास है, उसे और दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा; परन्तु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी जो उसके पास है, ले लिया जाएगा। (मत्ती 13:12) परमेश्वर के वचन का प्रकाशित ज्ञान शक्तिशाली है—यह आपको सच्ची स्वतंत्रता में चलने के लिए सशक्त बनाता है। इस प्रकार के प्रकटीकरण का एक […]
सत्य की सामर्थ: प्रकटीकरण का ज्ञान
और तुम सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा। (यूहन्ना 8:32) जो सत्य आपके लिए महत्वपूर्ण है, वही राज्य में महत्वपूर्ण है। वह जो परमेश्वर कहता है और आप पर प्रकट करता है। प्रत्येक बहता तथ्य या ज्ञान सत्य नहीं है, क्योंकि यह परमेश्वर की संतान के रूप में आपके जीवन में कोई मूल्य […]
सत्य की सामर्थ
और तुम सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा। (यूहन्ना 8:32 ) हर दिन, हम बड़ी मात्रा में सूचना और ज्ञान के संपर्क में आते हैं – इनमे से कुछ लाभदायक होते है, जबकि अधिकांश अनावश्यक होते है। सिर्फ इसलिए कि कोई बात सत्य है इसका मतलब यह नहीं है कि वह उपयोगी है […]
जब आप नहीं जानते कि क्या करना है
क्योंकि जो, अन्य ‘भाषा में बातें करता है; वह मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से बातें करता है; इसलिये कि उस की कोई नहीं समझता; क्योंकि वह भेद की बातें आत्मा में होकर बोलता है। (1 कुरिन्थियों 14:2) एक मानव मस्तिष्क और मानवीय क्षमताएं सीमित और परिमित हैं और इसी कारण से, एक प्राकृतिक मनुष्य […]
पवित्र आत्मा स्वयं हमारे लिए मध्यस्थता करता है
वैसे ही आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिये बिनती करता है (रोमियों 8:26)। एक मसीह के रूप में यदि आप कभी ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हैं […]
पवित्र आत्मा को सुनना
प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह और परमेश्वर का प्रेम और पवित्र आत्मा की सहभागिता तुम सब के साथ होती रहे॥ आमीन (2 कुरिन्थियों 13:14)। मैंने एक बार परमेश्वर के एक महान जन को यह कहते हुए सुना, “पवित्र आत्मा उनसे बात करता है जो सुनने की परवाह करते हैं”, यह कितना सच है! जितना आपके […]
आत्मिक बात करे
हे भाइयों, मैं तुम से इस रीति से बातें न कर सका, जैसे आत्मिक लोगों से; परन्तु जैसे शारीरिक लोगों से, और उन से जो मसीह में बालक हैं। (1 कुरिन्थियों 3: 1)। युहन्ना 11 हमें लाज़र की कहानी बताता है, जो बीमार हो गया और मर गया। यीशु ने जब सुना, उसने अपने चेलों से कहा “… हमारा मित्र लाज़र […]
भावना मायने नहीं रखती!
तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। (नीतिवचन 3:5) कई मसीह लोग परमेश्वर की उपस्थिति को परिभाषित करने के लिए अपनी भावनाओं पर निर्भर रहते हैं। जबकि, सच तो यह है कि भावनाएं भरोसेमंद नहीं होतीं। भावनाएँ पूरी तरह से मानवीय अनुभव पर, आधारित मानवीय सोच का […]