देने के प्रति आपका दृष्टिकोण
दो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाप दबा दबाकर और हिला हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा। (लूका 6:38) देना परमेश्वर के प्रति आराधना और सम्मान का कार्य है। देना एक आत्मिक नियम है और परमेश्वर की […]
क्या आप परमेश्वर के राज्य में एक अहम व्यक्ति हैं?
सो इसलिये कि तू गुनगुना है, और न ठंडा है और न गर्म, मैं तुझे अपने मुंह में से उगलने पर हूं। (प्रकाशित वाक्य 3:16) मसीहत कोई धर्म नही है, यह परमेश्वर का जीवन है जो एक मनुष्य में हैं। यह परमेश्वर है जो अपना जीवन आप में और आपके द्वारा जी रहा है। चाहे […]
पहले परमेश्वर के राज्य की खोज करो!
इसलिये पहिले तुम परमेश्वर के राज्य और सत्यनिष्ठा की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी। (मत्ती 6:33) हमारा मुख्य वर्स हमारे मास्टर यीशु द्वारा दिया गया कथन है। वह आपसे ऐसी चीज़ खोजने को नहीं कहेगा जिसे खोजना संभव नहीं है। फिर, उसने लूका 12:32 में कहा, “हे छोटे झुण्ड, मत […]
आत्मिक रूप से आज्ञाकारी बनें : भाग 1
इसलिये पहिले तुम परमेश्वर के राज्य और सत्यनिष्ठा की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी। (मत्ती 6:33) स्वर्ग का राज्य सिर्फ एक अवधारणा नहीं है – यह वास्तविक सामर्थ और दिव्य अधिकार वाला एक वास्तविक राज्य है। मसीह में, हम इस राज्य में जन्मे हैं, और विश्वासियों के रूप में, हम […]
स्वार्थी प्रार्थनाएं मत कीजिए
तुम मांगते हो और पाते नहीं, इसलिये कि बुरी इच्छा से मांगते हो, ताकि अपने भोग विलास में उड़ा दो।(याकूब 4:3) प्रार्थना परमप्रधान के साथ वार्तालाप है। परमेश्वर की संतान होने के नाते प्रार्थना हमारे लिए एक मिनिस्ट्री है। इसलिए आप हर एक चीज़ और हर एक व्यक्ति को परे हटा कर, सिर्फ परमेश्वर को […]
परमेश्वर का वचन बोलता है
पर पहिले यह जान लो कि पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती। (2 पतरस 1:20) 2 तीमुथियुस 2:15 में, पौलुस ने, तीमुथियुस से बात करते समय उसे मन लगाकर पवित्र शास्त्र का अध्ययन करने के लिए कहा और आगे उसने उससे कहा कि ऐसा […]