तेरे जीवन भर कोई तेरे साम्हने ठहर न सकेगा; जैसे मैं मूसा के संग रहा वैसे ही तेरे संग भी रहूंगा; और न तो मैं तुझे धोखा दूंगा और न तुझ को छोडूंगा। इसलिये हियाव बान्धकर दृढ़ हो जा; क्योंकि जिस देश के देने की शपथ मैं ने इन लोगों के पूर्वजों से खाई थी उसका अधिकारी तू इन्हें करेगा। (यहोशू 1: 5-6)

मूसा के बाद, परमेश्वर ने इस्राएल को वायदे की भूमि तक ले जाने के लिए यहोशू को चुना। यहोशू मूसा का एक वफादार सेवक था। वह मूसा की छत्रछाया में बड़ा हुआ।

जब परमेश्वर के लोग पहली बार कनान की सीमाओं पर आये, तब परमेश्वर ने मूसा को देश में जासूस भेजने का निर्देश दिया (गिनती 13: 2-20)। यहोशू उन लोगों में से एक था और वापस लौटने पर उसकी रिपोर्ट दूसरों के विपरीत, विश्वास की थी न कि डर की।

यहोशू बाइबल के ऐसे व्यक्तिओं में से एक था जिसे दैवीय प्रकटीकरण द्वारा जीत के लिए निर्देशित किया गया था। उसने मूसा की तरह बिना किसी संदेह के, परमेश्वर की आज्ञा मानी। जैसे ही यहोशू इस्राएल को उसके निर्णायक युद्धों में से एक में नेतृत्व करने के लिए तैयार हुआ, परमेश्वर का दूत उसके सामने प्रकट हुआ और उसे वह रणनीति दी जिसके द्वारा उसे शत्रुओं को हराना था। भले ही शहर, यरीहो, आक्रामकता के विरुद्ध बहुत दृढ़ था, उस पल में परमेश्वर के वचन ने उसे जीत का आश्वासन दिया। पवित्र आत्मा ने यहोशू को जीत की रणनीति दी। उसने कहा, “सो तुम में जितने योद्धा हैं नगर को घेर लें और उस नगर के चारों ओर एक बार घूम आएँ और छ: दिन तक ऐसा ही किया करना और सात याजक सन्दूक के आगे-आगे जुबली के सात नरसिंगे लिए हुए चलें; फिर सातवें दिन तुम नगर के चारों ओर सात बार घूमना और याजक भी नरसिंगे फूंकते चलें और जब वे जुबली के नरसिंगे देर तक फूंकते रहें, तब सब लोग नरसिंगे का शब्द सुनते ही बड़ी ध्वनि से जयजयकार करें; तब नगर की शहरपनाह नेव से गिर जाएगी और सब लोग अपने-अपने साम्हने चढ़ जाएं” (यहोशू 6: 3-5)।

वे दीवारें साधारण दीवारें नहीं थीं; वे बड़े पैमाने पर किलाबंदी थी। हालाँकि, जब इस्राएलियों ने परमेश्वर के निर्देश के अनुसार चिल्लाया, तो दीवारें ढह गईं (संदर्भ यहोशू 6)।

मसीह होने के नाते हमें ये सीखना चाहिए कि चाहे हम किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना करें, हमे हमेशा परमेश्वर के निर्देशों पर निर्भर रहना चाहिए। सच्चे विश्वास का अर्थ है परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना, तब भी जब उसके निर्देश मानवीय दृष्टि से अर्थहीन लगते हों। हमें याद रखना चाहिए कि यदि परमेश्वर हमारे साथ है तो जीत हमेशा हमारी ही होगी।

प्रार्थना:

आशीषित स्वर्गीय पिता, धन्यवाद मुझे अपनी आत्मा से भरने के लिए। मैं साहस से भरपूर हूँ। मैं परीक्षा के दिन गिरता नहीं, बल्कि मैं विश्वास से भरा हुआ हूँ, आपके वचन पर खड़ा हूँ, मेरा जीवन केवल ऊपर और आगे की ओर है, यीशु के नाम में। आमीन!

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